मंगरोप (मुकेश खटीक) गांव के वन क्षेत्र में इन दिनों वन्य जीवों की चहल कदमी बढ़ने लगी है।भूख के कारण वन्य जीव शिकार की तलाश में मंगरोप स्थित घने जंगल में सहजता से नजर आ जाते है।जरख का नाम आपने सुना होगा लेकीन इसे स्थानीय भाषा में एक और उपनाम लखड़बग्गा के नाम से भी जाना जाता है लखड़बग्गा वैसे तो इंसानों के लिए घातक नहीं होता है लेकीन भूखों मरने की नौबत आने पर कोई भी जानवर घातक हों जाता है।रविवार कों मंगरोप के वनखण्ड क्षेत्र में सहायक वनपाल एवं इनचार्ज हरिशंकर विश्नोई नें गस्त के दौरान एक जरख कों देखा और अपने मोबाइल के कैमरे में उसका फोटो एवं वीडियो भी कैद किया।
विश्नोई नें बताया कि स्थानीय भाषा में इसे लकड़बग्घा भी बोलते हैं जो कि जंगल में मृत जानवरों की हडि्डयां खाता है।इसके जबड़े इतने मजबूत होते हैं कि ये सुखी हडि्डयां तक आसानी से चबा जाते हैं।यह जानवर अफ्रीका और एशिया के जंगलो में बहुतायात संख्या में पाए जाते है।भारत में अब लकड़बग्घा की प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर है लेकीन मंगरोप के वनखण्ड क्षेत्र में इसका पूरा 5 से 6 सदस्यों का एक कुटुंब गुजर बसर कर रहा है गत सप्ताह भी पत्थर की खदानों पर काम करने वाले कुछ मजदूरों नें इस वन्य जीव कों खड़ी की खदान के समीप पत्थरों की खदान के पास विचरण करते देखा था।इसके शरीर की बनावट भद्दी होती है।इसके आगे के पैर पीछे के पैरों की तुलना में बड़े होते है जिससे इसके चलने के दौरान ऐसा प्रतीत होता है जैसे ये लंगड़ा कर चल रहा हों।ये जंगल में जमीन में मांद बनाकर रहता है।यह बिना पानी पिए भी कई दिनों तक जीवित रह सकता है इसका वजन करीब 40 किलो से ज्यादा होता है।इसके बारें में ऐसा कहा जाता है की यह जानवर जंगल के राजा शेर से भी झगड़ पड़ता है और यह उसके शिकार कों भी चुराकर चट कर जाता है।दो दशक पहले तक हमारे देश में ये बड़ी संख्या में पाए जाते थे लेकीन अब इनकी संख्या गिनी चुनी रह गई है।सरकार नें इनके शिकार पर प्रतिबन्ध लगा रखा है गलती से भी अगर कोई इनका शिकार कर लेता है तो उसे जेल तक की यात्रा करनी पडती है।